
CBSE New Rule : केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 2025-26 सत्र से शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव लागू करने का निर्णय लिया है। यह नया नियम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) 2023 के अनुरूप है। इस नीति के तहत प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक के छात्रों के लिए नए शिक्षा मानक लागू किए जाएंगे। इस बदलाव का उद्देश्य बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा को अधिक प्रभावशाली और रचनात्मक बनाना है। नए नियम में समग्र विकास पर ध्यान दिया जाएगा, जिससे छात्र न केवल शैक्षणिक आधार पर, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी मजबूत बन सकें। यह परिवर्तन शिक्षा के समग्र परिदृश्य को भी बदलने की क्षमता रखता है, जिससे सीखने की गुणवत्ता में सुधार मिलेगा।
CBSC ने मातृभाषा आधारित शिक्षा को शुरुआत करने का फैसला लिया
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 2025-26 सत्र से मातृभाषा आधारित शिक्षा को शुरुआत करने का फैसला लिया है। यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे (एनसीएफ) 2023 के क्रियान्वयन के लिए उठाया गया है। इस नई नीति के अंतर्गत, प्री-प्राइमरी से लेकर कक्षा 2 तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का मुख्य माध्यम बनाया जाएगा।
केंद्रीय विद्यालय ने इस दिशा में खास रणनीति बनाई है ताकि मातृभाषा के आधार पर कक्षाओं का विभाजन किया जा सके। सीबीएसई की इस पहल का मुख्य उद्देश्य है कि बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में मिले। इससे उन्हें पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी और वे चीजों को आसानी से समझ सकेंगे। केंद्रीय विद्यालयों में विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि के छात्र पढ़ते हैं, इसलिए इस नियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए खास तरीके अपनाए जा रहे हैं। मातृभाषा के आधार पर कक्षाओं का विभाजन बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को मजबूत करेगा। लेकिन, इस प्रक्रिया में कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा।
मातृभाषा का महत्व
सीबीएसई ने 22 मई 2025 को जारी एक सर्कुलर में स्पष्ट किया था कि प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक मातृभाषा या परिचित क्षेत्रीय भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाना अनिवार्य होगा। यह नियम एनईपी 2020 की थ्योरी पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में बेहतर तरीके से सीखते हैं। इससे उनकी समझ, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक जुड़ाव में वृद्धि होती है। अगर मातृभाषा को लागू करना संभव नहीं हो, तो राज्य की भाषा को प्राथमिकता दी जाएगी। कक्षा 3 से 5 तक कम से कम एक भारतीय भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाना आवश्यक होगा।
मातृभाषा में पढ़ाई के लाभ
मातृभाषा आधारित शिक्षा, यानी अपने परिचित भाषा में पढ़ाई करने से बच्चों की सीखने की क्षमता में वृद्धि होगी। यह नीति उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत बनाएगी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा की पहुँच को बढ़ावा देगी। हालांकि, कुछ अभिभावकों द्वारा अंग्रेजी माध्यम को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिससे सीबीएसई की इस नीति का विरोध भी संभव है। केंद्रीय विद्यालय इस बदलाव को धीरे-धीरे लागू करने की योजना बना रहे हैं और अभिभावकों को इस बारे में जागरूक करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इस तरह, मातृभाषा आधारित शिक्षा न केवल बच्चों की शिक्षा को सरल और सशक्त बनाएगी, बल्कि यह उनके व्यक्तिगत और सामाजिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी।